महिलाओ को लेकर समाज में लगातार बदलाव आ रहा है आज महिलाए पुरुषो के साथ कंधे से कंधा मिला कर हर क्षेत्र में कार्य कर रही हैं लेकिन फिर भी महिलाओ के साथ घरेलू हिंसा आज भी समाज के हर वर्ग में देखी जा सकती है व महिलाओं के खिलाफ घरेलू हिंसा के मामले आम तौर पर सामने आते रहते हैं घरेलू हिंसा पर रोक लगाने के लिए 2005 में घरेलू हिंसा से पीड़ित महिलाओं का संरक्षण अधिनियम पारित हुआ जिसके अंतर्गत महिलाओ को कई अधिकार दिए गए ।
घरेलू हिंसा (Domestic Violence) क्या है?
अधिनियम की धारा 3 के अंतर्गत घरेलू हिंसा को परिभाषित किया गया है जिसके अंतर्गत निम्नलिखित कार्य घरेलू हिंसा की परिभाषा में आते हैं-
शारीरिक हिंसा
महिला के साथ मारपीट करना, धक्का देना, बीमार महिला का इलाज न करवाना, शारीरिक पीड़ा या महिला के स्वास्थ या शारीरिक विकास को हानि पहुँचाना इत्यादि शारीरिक हिंसा माना जायेगा ।
लैंगिक हिंसा
जबरन शारीरिक संबंध बनाना, जबरन अश्लील साहित्य दिखाना या कोई भी ऐसा कार्य जो लैंगिक तरीके से महिला का अपमान करता हो अथवा महिला की गरिमा को हानि पहुंचता हो वो लैंगिक हिंसा माना जायेगा ।
मौखिक और भावनात्मक हिंसा
महिला का अपमान करना, चरित्र गलत बताना, पुत्र या संतान न होने को लेकर ताने मारना, महिला से गाली गलौज करना या अभद्र भाषा का प्रयोग करना या उसके रिश्तेदारों को नुकसान पहुँचाने की धमकी देना भी मौखिक और भावनात्मक हिंसा माना जायेगा ।
आर्थिक हिंसा
खाना कपड़ा दवाई इत्यादि उपलब्ध न कराना, नौकरी या रोजगार करने से रोकना या किसी भी आर्थिक संसाधन जिसकी महिला कानूनन रूप से हक़दार है से महिला को वंचित आर्थिक हिंसा माना जायेगा व महिला को पानी, बिजली इत्यादि के उपयोग से रोकना भी आर्थिक हिंसा है ।
पीड़ित महिला कौन है?
घरेलू हिंसा अधिनियम केवल शादीशुदा महिलाओं के लिए नहीं बल्कि प्रत्येक महिला के लिए हैं कोई भी महिला जो किसी भी पुरुष के साथ घरेलू सम्बन्ध में रहती हो या रह चुकी हो और घरेलू हिंसा का शिकार हो वो इस अधिनियम के तहत किसी भी समाधान की मांग कर सकती है । लिव इन रिलेशनशिप में रहने वाली महिला भी घरेलू हिंसा के खिलाफ इस अधिनियम के अंतर्गत अपने अधिकारों की मांग कर सकती है ।
किसके खिलाफ दर्ज हो सकती है शिकायत?
अधिनियम के अंतर्गत पीड़ित महिला किसी भी व्यस्क पुरुष के खिलाफ शिकायत दर्ज करा सकती है जिसके साथ वो घरेलू सम्बन्ध में रही हो या रहती हो । शादीशुदा महिला या लिव इन रिलेशनशिप में रहने वाली महिला अपने पति या लिव इन पार्टनर या उसके पुरुष व महिला रिश्तेदारों के खिलाफ शिकायत दर्ज करा सकती है । सास भी बहू के खिलाफ शिकायत दर्ज करवा सकती है ।
शिकायत कौन दर्ज करवा सकता है?
पीड़ित महिला ही नहीं बल्कि पीड़ित महिला की ओर से कोई भी व्यक्ति, रिश्तेदार, सामाजिक कार्यकर्ता, NGO, पडोसी, इत्यादि शिकायत दर्ज करवा सकते हैं शिकायत दर्ज करने के लिए यह ज़रूरी नहीं है की घरेलू हिंसा की घटना हो चुकी हो बल्कि अगर किसी को यह अंदेशा है कि किसी महिला के साथ घरेलू हिंसा हो सकती है तो इसकी भी शिकायत दर्ज करवाई जा सकती है ।
शिकायत कहाँ दर्ज हो सकती है?
निम्नलिखित न्यायिक मजिस्ट्रेट के कार्य क्षेत्र में से किसी भी क्षेत्र में पीड़ित महिला शिकायत दर्ज कर सकती है –
वह क्षेत्र जहाँ हिंसा करने वाला व्यक्ति निवास करता हो ।
वह क्षेत्र जहाँ हिंसा की घटना घटित हुयी हो ।
वह क्षेत्र जहाँ महिला का विवाह हुआ हो ।
वह क्षेत्र जहाँ विवाह के बाद महिला रही हो ।
वह क्षेत्र जहाँ ससुराल से निकाले जाने पर महिला ने शरण ले रखी हो ।
राष्ट्रीय महिला आयोग, राज्य महिला आयोग, महिलाओ व बच्चो पर काम करने वाले संगठन इत्यादि के अलावा महिला हेल्पलाइन नंबर 181, 1091 पर भी शिकायत दर्ज कि जा सकती है या शिकायत दर्ज करवाने में मदद ली जा सकती है ।
घरेलू हिंसा से पीड़ित महिला के प्रमुख अधिकार
साझी गृहस्थी में रहने का अधिकार
इस अधिकार के अंतर्गत महिला को अपने ससुराल में रहने का अधिकार है । साझी गृहस्थी से आशय यह है की ऐसा कोई भी घर जहाँ पर महिला घरेलू हिंसा करने वाले व्यक्ति (जिसे प्रतिवादी भी कहते हैं) के साथ रहती हो या पहले रही हो । अगर महिला किसी संयुक्त परिवार की सदस्य हो तो संयुक्त परिवार के घर पर रहने का अधिकार महिला के पास है व इस अधिकार की पूर्ति के लिए निवास आदेश पारित करवाया जा सकता है ।
निःशुल्क कानूनी सहायता का अधिकार
इस अधिकार के पीड़ित महिला के पास राज्य विधिक सेवा आयोग से मुफ्त विधिक सेवा प्राप्त करने का अधिकार है इस अधिकार के अंतर्गत पीड़ित महिला राज्य विधिक सेवा आयोग द्वारा मुफ्त में कानूनी सलाह भी प्राप्त कर सकती है ।
अपराधिक मुकदमा दर्ज करने का अधिकार
पीड़ित महिला के पास घरेलू हिंसा करने वाले व्यक्ति के विरुद्ध भारतीय दण्ड संहिता 1860 की धारा 498A में अपराधिक मुकदमा दर्ज कराने का भी अधिकार है व घरेलू हिंसा अधिनियम और धारा 498A के अंतर्गत एक साथ शिकायत दर्ज कारवाई जा सकती है ।
पीड़ित महिला के आवेदन पर मजिस्ट्रेट निम्नलिखित आदेश पारित कर सकते हैं-
संरक्षण आदेश
यह आदेश पीड़ित महिला को घरेलू हिंसा और किसी दूसरे प्रकार की हिंसा से बचाने के लिए पारित किया जाता है यह आदेश किसी व्यक्ति को घरेलू हिंसा के किसी कार्य को करने से, घरेलू हिंसा के किसी कार्य को में सहायता करने, पीड़ित महिला के कार्यस्थल में जाने से, पीड़ित महिला से इलेक्ट्रॉनिक, लिखित, मौखिक या अन्य किसी तरीके से संपर्क करने से, पीड़ित महिला की कोई भी संपत्ति जैसे बैंक अकाउंट, बैंक लॉकर, स्त्रीधन इत्यादि को बेचने से, पीड़ित महिला के रिश्तेदार और आश्रितों के साथ हिंसा करने से या कोई अन्य कार्य जो मजिस्ट्रेट द्वारा प्रतिबंधित किया गया हो ।
निवास आदेश
इस आदेश के द्वारा मजिस्ट्रेट प्रतिवादी को पीड़ित महिला को साझी गृहस्थी से निकालने से, साझी गृहस्थी के उस भाग में जाने से जहाँ पीडिता रहती हो उस भाग में प्रवेश से या प्रवेश में बाधा उत्पन्न करने से, साझी गृहस्थी में अपने अधिकार हस्तांतरित करने से या त्यागने से, इसके अलावा मजिस्ट्रेट ये भी आदेश पारित कर सकते है कि प्रतिवादी पीडिता को उसी स्तर का निवास स्थान उपलब्ध कराये जिस स्तर की साझी गृहस्थी है प्रतिवादी को ऐसे निवास स्थान का किराया देने का आदेश भी दिया जा सकता है निवास आदेश के पालन के लिए मजिस्ट्रेट निकटतम पुलिस थाने को पीडिता की मदद करने का आदेश दे सकते है ।
क्षतिपूर्ति एवं वित्तीय सहायता आदेश
पीड़ित महिला द्वारा कई बार मानसिक यातनाये व उत्पीडन भी सहा जाता है ऐसी यातनाएं झेलने के कारण हुए नुकसान की भरपाई के लिए मजिस्ट्रेट प्रतिवादी को क्षतिपूर्ति या वित्तीय सहायता का भी आदेश दे सकते हैं । इस आदेश के द्वारा पीड़ित महिला और उसके बच्चों को प्रतिवादी द्वारा वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है| वित्तीय सहायता घरेलू हिंसा की वजह से हुए नुकसानों और खर्चों के बदले दी जाती है । कमाई का नुकसान चिकित्सीय खर्चे पीड़ित महिला की संपत्ति के नष्ट होने से हुए नुकसान इत्यादि वित्तीय सहायता के लिए दी जाने वाली राशि पर्याप्त और पीड़ित महिला के जीवनस्तर के अनुसार होनी चाहिए । वित्तीय सहायता एकमुश्त या मासिक किस्तों के रूप में दी जा सकती है वित्तीय सहायता पीड़ित महिला और उसके बच्चों को आर्थिक रूप से सक्षम बनाने के लिए दी जाती है ।
अभिरक्षा आदेश
घरेलू हिंसा के मामले की सुनवाई के दौरान मजिस्ट्रेट पीड़ित महिला के बच्चों की अस्थायी अभिरक्षा (कस्टडी) पीड़ित महिला को दे सकते हैं या कस्टडी किसी ऐसे व्यक्ति को भी दी जा सकती है जो पीड़ित महिला की तरफ से बच्चों की कस्टडी के लिए आवेदन करे व मजिस्ट्रेट परिस्तिथि अनुसार प्रतिवादी को बच्चों से मिलने अनुमति दे सकते है या प्रतिवादी को बच्चों से मिलने से रोक भी सकते हैं ।
अंतरिम आदेश एवं एकपक्षीय कार्यवाही
इस अधिनियम के अंतर्गत होने वाली कोई भी कार्यवाही के दौरान मजिस्ट्रेट को कोई भी अंतरिम आदेश पारित करने का अधिकार है । घरेलू हिंसा की शिकायत या किसी आदेश पारित करवाने के आवेदन से मजिस्ट्रेट को यह लगता है की प्रथम दृष्टया घरेलू हिंसा घटित हो चुकी है या होने वाली है, तो वह प्रतिवादी के विरुद्ध एकपक्षीय आदेश दे सकते हैं एकपक्षीय आदेश प्रतिवादी को सुने बिना या सुनने का मौका दिए बिना पारित किये जाते हैं ।
Author:
एडवोकेट आफताब फाजिल
मोबाइल न० 9015181526
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Good job
Salute Adv Aftab fazil ji आप तो वह हीरा है जो समुंद में से बड़ी मुश्किल से ही हाथ लग पाये है।।। हम सामाजिक कार्यकर्ता आपको सेल्यूट देते है और देते रहेंगे अल्लाह आपको ओर हिम्मत दे ।। कि आप इतनी आसान भाषा मे ओर छोटे से ही शब्द में बहुत कुछ बारीकी से काफी कुछ समझा देते है।।। महिलाओं के लिए केवल सिर्फ अधिकार बताये ही जाते है।।।परंतु आप महिलाओं को उनके अधिकारों को कुछ ही शब्द में समझा देते है।।। जिससे वह आवाज़ उठा सके।।।जिससे पता चलता है कि आप महिलाओं की बहुत मान इज़्ज़त देते है।।। मै आपको सल्यूट करती हूं और सारी महिलाओं की तरफ से भी नमस्कार करती हूं ।।।।कि आप हम महिलाओं के बारे में इतना सोंच विचार कर हमें समझाते है।।और समझाते रहेंगे यही निवेदन है आपसे।।।।इन लेखों के जरिये हम अपने अधिकार को जाने तो सही।।।।।।
बहुत ही अच्छा और साधारण भाषा में लिखा गया लेख है जिसको लोग आसानी से समझ सकते है। इस लेख के माध्यम से घरेलु महिलाओ जो हिंसा की शिकार हो रही है उनको बहुत ज्यादा सहायता मिलेगी और दूसरे लोग भी इस लेख को पढ़ के अन्य लोगो को जागरूक करने का प्रयास कर सकते है। मैँ उम्मीद करता हु की आप हमें भविष्य में भी इस तरह की जानकारी देते रहेंगे।
शुक्रिया
धन्यवाद